गुरुवार, 27 जुलाई 2017

#मेवाती कवि उसमान फोजी के गीत में मेव और मीना संबंध #

एक वृक्ष के दो साखा है मेव कौम और मीणा ।
एक ही जैसा खान पान है एक ही रहना सहना ।
दोनो ने खून दिया, भारत का जब जब गिरा पसीना ।
कुछ पहले मेवो ने अपना धर्म अलग कर लिना ।
सामाजिक ताने वाने में कोई कमी नही आई  ।

एक कहानी ऐसीही लोगो ने मुझे सुनाई ।
मत्स्य दौर में मेहर, मेद था ,जिनके तीन लुगाई।
एक निपुति गई एक के लडकी चार बताई ।
और तीसरी से जन्मे थे एक बाहण और दो भाई ।
मेव और मीणा कौमोंं से इनने ख्याति पायी ।
शेरो जैसा साहस था ,बल था हाथी जैसा।
पशु पालन और खेती करना ,मुख्य था इनका पेशा ।

दुशमन को टकराने में ये आगे रहे हमेशा ।

हुनी चोट चलाई इनको जहा हुआ अंदेशा ।

जब जब भी आक्रमणकारी भारतकी और निहारे ।
सबसे पहले मेव और मीणो ने ललकारे ।
चूम चूम के पग रखते इनके डर के मारे ।
या तो भागे खेत छोड कर या फिर स्वर्ग सिधारे ।

ऐसी जरक दई वे हस्ती मूडकर नही लखाई ।

ऐसे मरदाने वीरो की गाथा आज सुनाई ।

जो इनसे टकराया उनको छुडवा दिया पसीना ।

बहादुरी ने दुशमन को भी प्रभावित कर दिना ।

अपनी मनवा के छोडी ऐ जब जब जिद पे आई ।
ऐसी मरदानी कौमो की शोहरत जंग में छाई ।

वतन परस्ती शायद इनने एक गुरु से  सीखी ।

रसम रिवाज  सादगी इनमें एक ही जैसी दिखी ।

गोत पाल देखो तो इनमें काफी है नजदीकी ।

अक्सर मीणा मेवो में होते थे  रिश्ते नाते ।

मसला हो तो साथ बैठकर आपस में सुलझाते ।

खुशीयों के मौके पर दोनो गाते और बजाते ।
बाहर के दुशमन के आगे साथ खडे हो जाते ।

चिल्लो पर जाते थे सबने अब तक होली गाई ।

संग सात गाते थे गीत और रतवाई ।

शादी और विवाह हुए आपस में अकबर ने तोडी ।

वश्या खां के चाल सू ये खाई होगी चोडी ।

गदका -पहे-बाज खेलते  दौडते थे घोडी ।
खूंटेली तो इन दोनो ने अब आकर छोडी ।

जुलम सितम के आगे दोनो ने तलवार उठाई ।
मेव और मीणो की यश गाथा जग में लहराई ।

डा.प्रहलाद सिंह मीना दोसा
दिनांक 27-7-2017

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