एक वृक्ष के दो साखा है मेव कौम और मीणा ।
एक ही जैसा खान पान है एक ही रहना सहना ।
दोनो ने खून दिया, भारत का जब जब गिरा पसीना ।
कुछ पहले मेवो ने अपना धर्म अलग कर लिना ।
सामाजिक ताने वाने में कोई कमी नही आई ।
एक कहानी ऐसीही लोगो ने मुझे सुनाई ।
मत्स्य दौर में मेहर, मेद था ,जिनके तीन लुगाई।
एक निपुति गई एक के लडकी चार बताई ।
और तीसरी से जन्मे थे एक बाहण और दो भाई ।
मेव और मीणा कौमोंं से इनने ख्याति पायी ।
शेरो जैसा साहस था ,बल था हाथी जैसा।
पशु पालन और खेती करना ,मुख्य था इनका पेशा ।
दुशमन को टकराने में ये आगे रहे हमेशा ।
हुनी चोट चलाई इनको जहा हुआ अंदेशा ।
जब जब भी आक्रमणकारी भारतकी और निहारे ।
सबसे पहले मेव और मीणो ने ललकारे ।
चूम चूम के पग रखते इनके डर के मारे ।
या तो भागे खेत छोड कर या फिर स्वर्ग सिधारे ।
ऐसी जरक दई वे हस्ती मूडकर नही लखाई ।
ऐसे मरदाने वीरो की गाथा आज सुनाई ।
जो इनसे टकराया उनको छुडवा दिया पसीना ।
बहादुरी ने दुशमन को भी प्रभावित कर दिना ।
अपनी मनवा के छोडी ऐ जब जब जिद पे आई ।
ऐसी मरदानी कौमो की शोहरत जंग में छाई ।
वतन परस्ती शायद इनने एक गुरु से सीखी ।
रसम रिवाज सादगी इनमें एक ही जैसी दिखी ।
गोत पाल देखो तो इनमें काफी है नजदीकी ।
अक्सर मीणा मेवो में होते थे रिश्ते नाते ।
मसला हो तो साथ बैठकर आपस में सुलझाते ।
खुशीयों के मौके पर दोनो गाते और बजाते ।
बाहर के दुशमन के आगे साथ खडे हो जाते ।
चिल्लो पर जाते थे सबने अब तक होली गाई ।
संग सात गाते थे गीत और रतवाई ।
शादी और विवाह हुए आपस में अकबर ने तोडी ।
वश्या खां के चाल सू ये खाई होगी चोडी ।
गदका -पहे-बाज खेलते दौडते थे घोडी ।
खूंटेली तो इन दोनो ने अब आकर छोडी ।
जुलम सितम के आगे दोनो ने तलवार उठाई ।
मेव और मीणो की यश गाथा जग में लहराई ।
डा.प्रहलाद सिंह मीना दोसा
दिनांक 27-7-2017
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