मंगलवार, 25 जुलाई 2017

विष्णु और नारायण एक नहीं है ।

ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से पूर्व विष्णु और नारायण अलग अलग देव थे । विष्णु का सम्बन्ध आर्य वैदिक सभ्यता से था तो नारायण का सम्बन्ध अनार्य जनजातीय सभ्यता से रहा । नारायण को भगवत और उसके उपासक को भागवत कह गया ।  नारायण जनजातीय सरदार अर्थात आदिवासी कबीले के सरदार का दिव्य रूप माना गया । नारायण का सम्बन्ध जल के देवता या जल में निवास करने बाले आदिवासी सरदार का रूप माना गया ।

( अस्थियों को जल में प्रवाहित करना अवैदिक परम्परा मानी गयी है । किसी समय सभी प्रवाहित होने बाले जल स्रोतों को गंगा ही कहा जाता था । जल में खड़े हो कर पित्र तर्पण करना भी अवैदिक परम्परा रही है । बहुत सी ऐसी परम्परा और मान्यता है जो अवैदिक सँस्कृति से आर्य सँस्कृति ने ग्रहण करी है । जल की पवित्रता, गंगा, योग, ध्यान, समाधि, प्रकृति पूजा, पीपल पूजा, स्वस्तिक ये सभी अवैदिक सभ्यता से आर्य सभ्यता ने ग्रहण किया।  आर्यों ने सिंधु आगमन के बाद सिन्धुवासियों की इन परम्परा को तो ग्रहण किया ही साथ ही यहां के देवी देवताओं को भी आत्मसत किया । गणेश, शिव, काली, नारायण, लिंग पूजा, प्रकृति पूजा सहित बहुत सी चीजें है जिन्हें आर्यों ने ग्रहण किया । सिंधु सभ्यता नगरीय सभ्यता थी जबकि आर्य सभ्यता ग्राम सभ्यता जिससे ये भी अनुमान लगता है की नगर नियोजन की सभ्यता भी अनार्यो से ही आर्यों में आयी । सिंधु सभ्यता गणतन्त्रीय सभ्यता थी जिसका परिस्कृत रूप हम आधुनिक समय में देखते है जबकि आर्य सँस्कृति राजतंत्रीय थी । निसंदेह अनार्य सँस्कृति आर्य संस्कृति से बेहतर रही होगी । )

  ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में जनजातीय सरदार के दिव्य रूप नारायण को विष्णु से एकाकार कर दिया गया । सम्भवतः मीना जनजाति में मीनेष की विष्णु से उतप्ती का मूल कारण भी यही एकीकरण बनता है । चूंकि मीना जनजाति आर्यों और विष्णु से भी पूर्व की है अतः मीना जनजाति जिसका गनचिन्ह मछली जल से सम्बन्ध रखती है एवं नारायण जिसका सम्बन्ध भी जल से है साथ ही नारायण अवैदिक देवता है  अर्थात जनजातीय सरदार का दिव्य रूप जो आर्य विष्णु से पृथक अस्तित्व रखता है का सम्बन्ध मीनेष के रूप में प्रकट होता है।  नारायण और मीन गनचिन्ह का एकीकरण ही सम्भवतः मीनेष के अर्ध मछली अर्ध मानव के रूप में प्रकट किया गया । मीनेष के सिर पर सींग उसके आदिवासी कबीले के मुखिया का घोतक है ।  सम्भवतः दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में इसका सम्बन्ध  नारायण और विष्णु के एकीकरण से आर्य विष्णु से जोड़ा गया जिसकी परिणीति भागवत सम्प्रदाय के रूप में हुई जिसने अनार्य और आर्य दोनों सँस्कृति को प्रभावित किया  । इन दोनों रूपो के एकीकरण के पश्चात अनार्य कृष्ण को भी विष्णु से जोड़ दिया गया और अवतारवाद की संकल्पना को पुष्ट किया गया जिसके लिए महाभारत का पुनः लेखन किया गया । जिसमें अनार्य कृष्ण की हत्या इंद्र द्वारा किये जाने के उल्लेख को हटा कर उसका आरोप एक निषाद पर डाल दिया गया । सम्भवतः लोक मान्यता में अनार्य कृष्ण की छवि मान्यता इतनी दृढ़ हो चुकी थी जिसे मिटाया नहीं जा सके तो उसका भी नारायण मीनेष की तरह आर्यकरण करते हुए विष्णु का अवतार घोसित कर दिया गया ।  कुल मिला कर ये सारा लेखन और मिथकों को आर्य सँस्कृति को अनार्य समुदाय में मान्यता प्रदान करने के लिए किया गया । 
( शोध जारी.......)
###ड़ी एस देवराज###

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