प्रथम भ्रांति - आरक्षण शब्द पर रही है क्योकि जो वास्तविकता में प्रतिनिधित्व व्यवसतः। है ।
दूसरी भ्रांति - आमजन में आरक्षण व्यवस्था के 10 वर्षीय होने की रही है जबकि वास्तविकता में नौकरी, शिक्षा में आरक्षण/ प्रतिनिधित्व मूलाधिकार के रूप में शामिल है जिसकी कोई समय सीमा नहीं है । 10 वर्षीय आरक्षण राजनीतिक आरक्षण है जिसे परिसीमन आयोग के माध्यम से लोकसभा एवं विधानसभा की सीटों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो 2020 में पुनः प्रस्तावित है ।
तीसरी भ्रांति - ये है की पंडित नेहरू की बजह से आरक्षण/प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गयी । आरक्षण पंडित नेहरू की देन नहीं बल्कि पूना पेक्ट के समय गांधी और अम्बेडकर के समझौते का परिणाम है जिसमें अम्बेडकर ने दो वोट का अधिकार छोड़ कर आरक्षण व्यवस्था को स्वीकार किया । सवर्ण हितों की दृष्टकोण से ये सवर्ण हित का निर्णय था जबकि आरक्षित वर्ग की दृष्टकोण से ये नुकसानदायक सौदा था ।
चौथी भ्रांति - आरक्षण को ले कर है की संविधान में आरक्षण की व्यवस्था अम्बेडकर की देन है जबकि वास्तविकता में मूल संविधान में आरक्षण व्यवस्था नहीं थी जिसे प्रथम संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया । याद रहे संविधान सभा में 87% से ज्यादा सवर्ण थे जिनमें भी ब्राह्मण 84% से ज्यादा थे (घनश्याम तिवाड़ी के विधानसभा में दिए बक्तव्य के अनुसार ) ।
पांचवी भ्रांति - ST एवं SC के आरक्षण के संदर्भ में है की इन्हें सामाजिक पिछड़ेपन एवं छुआछूत के कारण आरक्षण मिला । SC के आरक्षण के साथ छुआछूत एक बड़ा कारण हो सकता है लेकिन ST के आरक्षण में नहीं क्योकि ST में प्रीमेटिव ट्राइब्स को शामिल किया गया । सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार ये भारत देश मूलतः आदिवासियोँ का है जिनकी उपस्थिति में प्रत्येक व्यक्ति विदेशी है । जिन आदिवासियोँ का इस देश के 100% भूभाग का 90% लोग उपभोग कर रहे है उन्हें 7.5% या 12% आरक्षण दिया गया वो भीख नहीं अधिकार है। आजादी की लड़ाई सबसे ज्यादा आदिवासी ने ही लड़ी है।
छटी भ्रांति - आरक्षण के कारण सवर्णो में बेरोजगारी बड़ी है जबकि वास्तविकता में बेरोजगारी बढ़ने का कारण आरक्षण नहीं बल्कि सरकार द्वारा किया जा रहा निजीकरण है। 1995 से पूर्व भी आरक्षण था लेकिन बेरोजागरी इतनी नहीं थी लेकिन मनमोहन सिंह वित्तमंत्री काल एवं नृसिंम्हा के प्रधानमंत्री काल में सरकारी क्षेत्र को खत्म करने एवं निजी क्षेत्र को बढ़ाने की शुरुआत की गई जिससे सरकारी क्षेत्र के रोजगार अवसर समाप्त होते गए । इस परम्परा को अटल विहारी फिर UPA और उसके बाद मोदी सरकार ने निरन्तर जारी रखा जिसका परिणाम ये निकला की 2013 में 1.5 लाख रोजगार केंद्र सरकार की तरफ से दिए गए लेकिन 2015 में नियुक्ति देने की संख्या 16000 का आंकड़ा भी नहीं छू पायी अर्थात 90% की कटौती केंद्र सरकार की भर्तियों में । जब सरकारी नौकरी में 90% की कटौती कर दी गयी तो आम युवा को रोजगार कैसे मिलेगा ? बेरोजगारी के इस मूल कारण को चालाक लोगो द्वारा निजीकरण के स्थान आरक्षण व्यवस्था पर थोप दिया जाता है और आम युवा का ध्यान बेरोजगारी के असल कारण निजीकरण पर न जा कर आरक्षण को उत्तरदायी ठहरा दिया जाता है ।
सातवी भ्रांति - 50% सीट सामान्य वर्ग के लिए है । ये एक सबसे बड़ी भ्रांति है । जिसे सामान्य सीट कही जाती है वो वास्तविकता में केवल सामान्य के लिए नहीं है बल्कि इन सीटों को मेरिटकोटा कहा गया है । अर्थात ये सीट आरक्षित एवं अनारक्षित सभी वर्ग के लिए होती है ।
### डी एस देवराज ###
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