मंगलवार, 25 जुलाई 2017

"1966 में बनी मीणा मेव महापंचायत का पतन कट्टरपंथी और राजनेतिक लोगो की बजह से "

भारत की मीणा जनजाति अति प्राचीन आदिवासी जनजाति है जो मत्स्य,मीन,मैंणा,मारण, ने,नेवर के नाम से भी प्रसिद्ध रही है ।

अति प्राचीन जनजाति होने के कारण यह जनजाति बहुत सी जातियों और संस्कृति के सम्पर्क में भी आयी जिस के कारण इस जनजाति से कई उपजाति के जन्म और सांस्कृतिक परिवर्तन से इनकार नहीं किया जा सकता ।

भारत पर मध्यकाल तक अधिकाँश विदेशी आक्रमण पश्चिम से हुए और उन्हें रोकने का काम मीणा जनजाति ने प्राचीन समय से निरन्तर किया जिसके कारण विदेशी आक्रमणकारियों और भारत (सिद्ध देश) के मूलनिवासियों के मध्य मीणा जनजाति एक सुरक्षा दीवार की तरह उपस्थिति रही ।

प्रारम्भिक आर्य आक्रमण के समय भी इस जनजाति ने प्रतिरोध किया जिसका प्रमाण ऋग्वेदिककालीन दस राजा युद्ध में इस जनजाति द्वारा  आर्य राजा सुदास के विरुद्ध युद्ध में भाग लेने का वर्णन मिलता है  तो विदेशी आर्य ब्राह्मण परसुराम से मत्स्यराज के युद्ध का वर्णन भी गर्न्थो में मिल जाता है ।##( परसुराम जब युद्ध में मत्स्यराज को जीत नहीं सका तो धोखे से मत्स्यराज की हत्या कर देता है जिस पर मेरी अगली पोस्ट में जानकारी दी जायेगी । देवराज । )##

मीना जनजाति ने विदेशी आर्यों से ही नहीं बल्कि मुस्लिम आक्रमणकारियों से भी मुकाबला किया । कुछ क्षेत्रों में परास्त होने पर मीणा जनजाति से एक नई जाति मुस्लिम मेव का जन्म होता है । मेव वो मीणा थे जो मुस्लिम आक्रमणकारियों से परास्त हो कर इस्लाम धर्म को ग्रहण कर लेते है लेकिन अपनी मूल संस्कृति को नहीं छोड़ते । दरिया खान और शशिवदनी का विवाह सम्बन्ध इस बात का प्रमाण था की मेव जाति मीनाओ से ही निकली थी और उनमें विवाह सम्बन्ध आम बात थी । ( मीना इतिहास शोधकों को इस बात पर भी शोध करने की आवश्यकता है की पिछले 5000 से 8000 साल के मध्य और कोनसी उपजातियां है जिनकी उत्पति मीना जनजाति से हुयी है ? )

## ( दरिया खान और शशिवदनी की प्रेमकहानी ढोला मारू की कहानी की तरह लोकजीवन में प्रसिद्ध रही है लेकिन निरन्तर आक्रमण और नई नई संस्कृतियों के सम्पर्क में आने से मीना जनजाति की संस्कृति बहुरंगी बनी । एक तरफ मीना लोगो द्वारा प्राचीन जनजाति की परम्पराओं का पालन किया जाता है तो दूसरी तरफ निरन्तर युद्ध के कारण हुए सम्पर्क के कारण दूसरी संस्कृति की परम्पराओं का प्रभाव भी मीना जनजाति पर देखने को मिलता है लेकिन इस में कोई शक नहीं की इस जनजाति ने आदिकाल से निरन्तर विदेशियों से प्रतिरोध के साथ आजादी के लिए संघर्ष किया । ये संघर्ष मध्यकाल जो राजपूत मुगल गठबन्धन के कारण इस जाति के लिए राजनेतिक, सामजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक पतन का काल रहा, में भी जारी रहा तो अंग्रेजो के आक्रमण के समय भी आजादी के लिए निरन्तर संघर्ष जारी रहा जिसके कारण इस जनजाति के आजादी और अधिकार प्राप्ति के लिए किये गए संघर्ष को अपराध माना गया और जरायम पेशा कानून द्वारा इस जनजाति के स्वाभिमान को ध्वस्त करने का षड्यंत्र राजपूत शासक और अंग्रेजों ने मिल कर किया और मीना जनजाति को अपराधिक जनजाति घोषित कर दिया गया । ये ठीक उसी तरह की घटना थी जिस तरह भारत के आदिवासियों को जल, जंगल, जमीन से बेदखल करने पर किये गए हथियारबन्ध संघर्ष को नक्शली और नक्शलवाद की संज्ञा दी गयी । )##

विदेशी आक्रमणकारियों से सीधे प्रतिरोध का नुक्सान इस जनजाति को उठाना पड़ा और राजपूत मुगल गठबंधन के कारण पतन का शिकार होना पड़ा । मुस्लिम आक्रमणकारियों के प्रभाव के कारण इस जनजाति में बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन हुआ और इस्लाम धर्म परिवर्तित मीणा मेव कहलाये जाने लगे। कालांतर में मेवो के घर बापसी के भी प्रयास किये गए जिनमे 1966 का मीणा मेव सम्मेलन मुख्य था ।

सन् 1966 में मेव मीणा एकता को लेकर मेव मीणा सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसके आयोजक मेव मीना कार्यकर्ताओ के साथ मुख्य रूप से हरियाणा के रामसिंह सेवरा व् मास्टर रहमत खां के एडवोकेट पुत्र मोहम्मद इस्माइल खां थे ।

सम्मेलन के पूर्व श्री रामसिंह सेवरा ने कप्तान छुट्टन लाल जी,  हरिकिशन जी तहसीलदार (विधायक राजगढ़), कुम्हेर प्रधान और स्वतन्त्रता सैनानी भीमसिंह जी एडवोकेट, समाजसेवी श्री भैरवलाल "काला बादल" से पुर्वानुमति ले कर मोहम्मद इस्माइल खान के साथ दो महीने तक मेवात क्षेत्र का दौरा किया लेकिन मेव मीणा सम्मेलन के दिन ही सम्भवत सम्पर्क अभाव के कारण श्री  झूतालाल जी ने बस्सी क्षेत्र के स्थानीय सामजिक कार्यकर्ताओ की मीटिंग आयोजित करवा कर कप्तान छुट्टन लाल के आने की घोषणा करवा दी । कप्तान साहब ने मेव मीणा सम्मेलन में न जा कर बस्सी जाने का निर्णय किया  ( कप्तान साहब का ये भी मानना था की इस सम्मेलन से हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़क सकते है जो भड़के भी थे जिसके पीछे निसन्देह साम्प्रदायिक और राजनेतिक ताकतों का हाथ रहा ) जबकि मीणा समाज के श्री भीमसिंह जी एडवोकेट, श्री भैरवलाल "काला बादल", श्री बद्री प्रसाद दुखिया, श्री गोविन्द राम आयकर अधिकारी सहित मुख्य वरिष्ठ सामजिक कार्यकर्त्ता मीना मेव एकता के लिए इस सम्मेलन में उपस्थिति हुए तथा बडोद मेव के लार्ड सन्नू खां मेवाती, मेवात के प्रमुख मेव चौधरी भी सम्मेलन में पधारे । सम्मेलन में "मीणा मेव महापंचायत" का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष श्री हरिकिशन जी मीना को तथा उपाध्यक्ष मास्टर रहमत खां के पुत्र एडवोकेट इस्माइल खां को बनाया गया ।

अलवर के प्रभावशाली कोंग्रेसी राजनेता शोभाराम,  डीग के एक जाट के साथ बिना आमन्त्रण सम्मेलन में उपस्थित हुए । शोभाराम राजनेतिक व्यक्ति थे जिन्होंने इस बात को महशुश कर लिया की मेव मीणा एकता से मेवाती क्षेत्र में मेव और मीणा एक राजनेतिक ताकत के रूप में उभर सकते है जो स्थापित राजनेताओ के लिए एक चुनोती भी बन सकती है ।

ज्ञात जानकारी के अनुसार सम्मेलन के बाद राजनेता शोभाराम ने इस सम्मेलन के प्रभाव को इस रूप में प्रसारित किया की मेव इस्लाम धर्म छोड़ कर हिन्दू बनने जा रहे है । इस तरह का सन्देश का प्रसार मोलवियों को भड़काने बाला और मीणा मेव एकता के लिए नकारात्मक था । मोलवियों ने ये सुचना जामा मस्जिद तक भी पहुंचा दी ।

साम्प्रदायिक ताकतों और साम्प्रदायिक लोगों ने धार्मिक सद्भावना के प्रतीक मास्टर रहमत खां की हत्या मेरठ क्षेत्र में  कर दी तथा अलवर कोर्ट परिसर में मास्टर रहमत खान के पुत्र इस्माइल खान पर जानलेवा हमला किया गया । इन हिंसक घटनाओ से श्री हरिकिशन जी ने विचलित हो अध्यक्ष पद पर कार्य करने में असमर्थता जाहिर की जिसके पीछे सम्भवत दबाव एवं भय रहा हो फलत कुछ ही दिनों में  "मीना मेव महापंचायत" जो मेव मीणा एकता के लिए एक मील का पत्थर साबित होती राजनेतिक और कट्टरपंथी लोगो के प्रभाव के कारण निष्क्रिय हो कर लुप्त हो गयी ।  
अगर उस समय के मेव मीणा राजनेताओ ने इस मुद्दे पर गम्भीरता और साहसिकता दिखायी होती तो मेव मीना समाज के समाजिक कार्यकर्ताओं के प्रयास निसंदेह सफल होते और मेव मीणा एकता की शक्ति एक निर्णायक ताकत बन चुकी होती साथ ही मेवों की घर बापसी के साथ राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी एकता को मजबूती मिलती ।

मेव मीणा एकता के कुछ गम्भीर प्रयास इसके बाद डॉ किरोड़ी लाल मीणा एवं रमेश मीणा (भूतपूर्व विधायक )  द्वारा किये गए लेकिन एक राजनेतिक व्यक्ति होने के कारण उनके प्रयासों को भी पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हो सकी । इस दिशा में मेव मीना सामाजिक संघटनो को गम्भीरता से एक बार पुनः गैरराजनीतिक रूप से प्रयास करने की आवश्यकता जिससे मेव मीणा सामाजिक सद्भावना के साथ आदिवासी जगत को एक ताकत प्राप्त हो ।

साहित्यिक एवम् इतिहास लेखकों की तरफ से इस दिशा में सत्यान्वेषण के लिए प्रयास किये गए है जिसका प्रमाण मुंशी खां बालोत एवं डॉ पी. एस. सहारिया द्वारा लिखित पुस्तक " मेवात का इतिहास और संस्कृति " है जिसमें डॉ ब्रजकिशोर शर्मा, डॉ प्रह्लाद सिंह मीना, डॉ मुंशी खां बालोत, सिद्धिकी अहमद मेव, डॉ फूल सिंह सहारिया, डॉ जीवन सिंह मानवी, भगवान दास मोरवाल, डॉ महावीर प्रसाद शर्मा, प्रो वी के वशिष्ठ, डॉ के सी यादव, डॉ एस सी मिश्रा, डॉ अनुराधा माथुर, डॉ छंगाराम मीना, चौधरी रहीम खान, डॉ देशराज वर्मा, सीमा गौतम, डॉ शीतल मीना, सूर्यदेव सिंह बारहट, डॉ अशोक कुमार मीना, मुबीना, डॉ यशोदा मीना, डॉ अंजना वर्मा, राजाराम भादू, डॉ आँचल मीना, डॉ अविनाश चन्द्र नागपाल, राजदुलारी मखेचा, बनवारी लाल यादव, उस्मानी फौजी जैसे विद्वान लेखकों के लेखों का मेव और मीना की साझा संस्कृति पर संकलन किया गया है ।
नोट:- इस लेख का उद्देश्य अतीत को जानने के साथ मेव  मीणा समाज के वास्तविक सामजिक कार्यकर्ताओ के कार्यों को समाज के सामने लाना तथा भविष्य के लिए जागरूकता पैदा करना है । 
लेखक:- डॉ प्रह्लाद सिंह मीना ( मीणा इतिहास शोधक एवं लेखक ) 
एवं डी एस "देवराज" ( एसोसिएट फाउंडर हक रक्षक दल )

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