सम्पादन-देवराज
1-इतिहासवेत्ता डॉ प्रह्लाद सिंह मीणा के मतानुसार ज्ञातृक कुल के ज्ञातृकों को नय व् नाय सम्बोधनों से भी सम्बोधित किया गया है।न्य का अर्थ मछली होता है । हिंदी शब्दकोशों में नय का अर्थ निति है अत स्पस्ट है की न्य शब्द से ही नय व् नाय शब्द की उत्पति हुयी है ।
अति प्राचीन काल में मीणा जनजाति के ही अन्य नाम न्य, ने, नेवर, नयस भी थे ।चूँकि नय व् नाय जाति मीन जनजाति का ही एक रूप है और भगवान महावीर के कुल ज्ञातृक कुल को भी नय- नाय कहा गया है । भगवान महावीर के क्षेत्र नेपाल में आज भी नेवार जाति पायी जाती है ।
2-यक्ष के अनेक अर्थ है जैसे खाना, पूजा, किसी का सम्मान करना , एक जाति विशेष जैन ग्रन्थ में आत्म संयमी व्यक्ति को यक्ष कहा है ।
जातिवाचक यक्ष शब्द मीन के पर्यायवाची झष का ही अपभ्रंश है । प्राचीन काल में शब्द के अंत में लगे ष की ध्वनि ख उच्चारित की जाती थी अतः झष शब्द का अपभ्रंश जख में हो कर इसका संस्कृतकरण यक्ष हुआ और कुछ इतिहासकारो के अनुसार भगवान महावीर का सम्बन्ध यक्ष जाति से था ।
हिमालय क्षेत्र विशेष में मीन जाति के लोग जख-यक्ष कहलाये । इस शाखा के मीन आवागमन व्यवसाय से जुड़े थे और व्यापारियो के रक्षक होने के साथ स्वयं भी व्यापार करते थे ।
(जख-यक्ष मीन विश्वसनीय धन के रक्षक थे ।धन के विश्वसनीय रक्षको के रूप में मीना जनजाति की पहचान आधुनिक समय तक बरकरार रही जिसके कारण ही जयपुर राज घराने के खजाने के रक्षक मीना जनजाति के लोग ही होते थे ।)
कुछ विद्वजन असुर अनार्यो को दो रूप में मानते है , एक जो रक्षा करने का कार्य करते उन्हें यक्ष कहा गया दूसरे जो यज्ञ को नस्ट करने का काम करते उन्हें राक्षस ।
(यक्षो का राजा प्रसिद्ध कुबेर हुए जिन्हें आर्य संस्कृति ने कालांतर में सम्मान दिया और देवता का स्थान प्रदान किया लेकिन उन्हें मुख्य देवता का स्थान कभी प्राप्त नही हुआ । )
3-राजस्थान के जिले करौली में श्री महावीर जी नामक स्थान का प्राचीन नाम चंदन पूरी (चांदन गाँव) था लकवाड़ गोत्र के चंदन ने चन्दनपुरी (चांदन गाँव) की स्थापना करी थी । इसी चन्दनपुरी के अवशेषो से श्री महावीर भगवान की मूर्ति प्राप्त हुयी थी और इन्ही महावीर जी के मेले में आस पास के मीणा भाग लेते है ।
4-हिमालय प्रदेश में प्राचीनकाल में वीर मतस्य जनपद था । महाभारत कालीन मतस्य जनपद आधुनिक मीना जनजाति का प्राचीन जनपद था । यक्ष का एक अन्य नाम वीर है । अतः वीर मतस्य जनपद यक्ष मीन जाति का जनपद प्रतीत होता है ।
5- दक्षिण भारत में यक्ष पूजा मारन नाम से भी होती है और आदिम जनजाति मीना/ मीन/ मीणा को मारण भी कहा जाता है ।
उपरोक्त तथ्यों से स्पस्ट होता है की मीन /मीना/मीणा जाति का यक्षो से, यक्ष संस्कृति से सम्बन्ध रहा है साथ ही भगवान महावीर से भी । इन्ही भगवान महावीर का दीपावली के दिन निर्वाण होने पर लिच्छवियों ने दीपक जलाये थे क्योकि नायो के सिधार्थ ( महावीर) का विवाह लिच्छवी कुल की तृषला से हुआ था ।
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र में दीपावली के दिन पितरो को दीपक दिखाने की परम्परा आज भी है ।
दीपावली को दीपक जलाने की परम्परा का सम्बन्ध पितरो को दीपक जला कर उनके स्वागत के लिए है । काल के थपेड़ो ने दीपक जलाने के मूल कारण को विस्मर्त कर दिया लेकिन उस के अवशेष आज भी बाकी है ।
दीपावली का पर्व अमावस्या के दिन आता है । माह की प्रत्येक अमावस्या को पितरो को भोग लगाने की परम्परा आदिम मीन/मीना/मीणा जनजाति में आदिम काल से चली आ रही है । भगवान महावीर के निर्वाण दिवस होने के कारण दीपावली कार्तिक कृष्ण अमावस्या का दिन पितृ तर्पण के लिए मुख्य हो गया । मीना जनजाति के कुछ गोत्रो में दीपावली के दिन पितरों को जल तर्पण की परम्परा है । आर्य संस्कृति के विपरीत मीना जनजाति में दीपावली के एक दिन पूर्व, दीपावली के दिन, गोवर्धन के दिन और कार्तिक शुक्ल चौदस के दिन पितरों को जल तर्पण किया जाता है न की श्राद्ध पक्ष में , साथ ही पितर तर्पण में ब्राह्मण भूमिका नहीं होती और ये परम्परा मीना जनजाति को अपनी अनार्य परम्परा से आज भी जोड़े हुए है जो इस बात को प्रमाणित करती है की मीना जनजाति एक अनार्य जाति है ।इस प्रकार देखा जाए तो दीपावली का त्यौहार यक्ष पूजा और पितृ तर्पण का ही मूल पर्व है ।
दीपावली से राम का सम्बन्ध बहुत बाद में जोड़ा गया है । यह विचारणीय है की यदि इस पर्व का सम्बन्ध राम से रहा होता तो उनकी पूजा भी इस दिन प्रचलित हुयी होती परन्तु ऐसा नहीं है ।
मूल लेखक- डॉ प्रह्लाद सिंह मीणा-9414334664
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