चारी प्रथा पुनःचालू की जाए ।
सामाजिक प्रथाएं हमे अपने पूर्वजौ से विरासत में मिलती है हर प्रथा में केवल बुराईयां हो ऐसी बात नही।कुछ प्रथाओ में केवल अच्छा ईया तो कुछ मे बुराई और अच्छाईया दोनो होती है ।
बुराईयों युक्त प्रथा
के उन्मूलन की आवाज बुलंद करने से पहले हम क्यो ना उसकी बुराईय़ो को दूर करने का प्रयत्न करे ताकि उस प्रथा में अच्छाईया ही रह जाए ।
उ.पू. राजस्थान के मीना समुदाय में दक्षिण राजस्थान के मीना समुदाय के समान वधू मूल्य की प्रथा थी कालांतर मे एक निश्चित राशी ली जाने लगी कुछ दशक पूर्व पचवारा में चारी की रकम 43रूपये तय थी वर पक्ष वधू पक्ष को देता था ।
समाज का नजरीया बदला चारी प्रथा को समाप्त कर दिया ।जिस समय चारी प्रथा बंद की उस समय वर पक्ष ही वधू का सहारा जेवर बनवा कर ले जाता था।
वर्तमान मे मीना समाज में दहेज एक गंभीर बीमारी की तरह है इस पर अंकुश लगाने के लिए लुप्त हो चुकी चारी प्रथा को बढावा दिया जाना चाहिए ।मेरे व्यक्तिगत विचारो से इस प्रथा से कई लाभ समाज हित मे ले सकते है
1 अदिवासी पहचान को मजबूती मिलेगी ।
2 संगठन ग्राम या ब्लोक स्तर पर कमेटी गठित कर पंच पटेलो के माध्यम से चारी की रकम दहेज के आधार पर तय कर वधू पक्ष को ना देकर संस्था में जमा करे
तथा उस संकलित रकम से समाज की विधवा की पुत्री या गरीब परिवार की लडकी के विवाह मे खर्च किया जाए
3 चारी प्रथा से शनै शनै दहेज की प्रथा पर अंकुश लगेगा ।
डा.प्रहलादसिंह मीना दौसा
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