गुरुवार, 27 जुलाई 2017

#मेवाती कवि उसमान फोजी के गीत में मेव और मीना संबंध #

एक वृक्ष के दो साखा है मेव कौम और मीणा ।
एक ही जैसा खान पान है एक ही रहना सहना ।
दोनो ने खून दिया, भारत का जब जब गिरा पसीना ।
कुछ पहले मेवो ने अपना धर्म अलग कर लिना ।
सामाजिक ताने वाने में कोई कमी नही आई  ।

एक कहानी ऐसीही लोगो ने मुझे सुनाई ।
मत्स्य दौर में मेहर, मेद था ,जिनके तीन लुगाई।
एक निपुति गई एक के लडकी चार बताई ।
और तीसरी से जन्मे थे एक बाहण और दो भाई ।
मेव और मीणा कौमोंं से इनने ख्याति पायी ।
शेरो जैसा साहस था ,बल था हाथी जैसा।
पशु पालन और खेती करना ,मुख्य था इनका पेशा ।

दुशमन को टकराने में ये आगे रहे हमेशा ।

हुनी चोट चलाई इनको जहा हुआ अंदेशा ।

जब जब भी आक्रमणकारी भारतकी और निहारे ।
सबसे पहले मेव और मीणो ने ललकारे ।
चूम चूम के पग रखते इनके डर के मारे ।
या तो भागे खेत छोड कर या फिर स्वर्ग सिधारे ।

ऐसी जरक दई वे हस्ती मूडकर नही लखाई ।

ऐसे मरदाने वीरो की गाथा आज सुनाई ।

जो इनसे टकराया उनको छुडवा दिया पसीना ।

बहादुरी ने दुशमन को भी प्रभावित कर दिना ।

अपनी मनवा के छोडी ऐ जब जब जिद पे आई ।
ऐसी मरदानी कौमो की शोहरत जंग में छाई ।

वतन परस्ती शायद इनने एक गुरु से  सीखी ।

रसम रिवाज  सादगी इनमें एक ही जैसी दिखी ।

गोत पाल देखो तो इनमें काफी है नजदीकी ।

अक्सर मीणा मेवो में होते थे  रिश्ते नाते ।

मसला हो तो साथ बैठकर आपस में सुलझाते ।

खुशीयों के मौके पर दोनो गाते और बजाते ।
बाहर के दुशमन के आगे साथ खडे हो जाते ।

चिल्लो पर जाते थे सबने अब तक होली गाई ।

संग सात गाते थे गीत और रतवाई ।

शादी और विवाह हुए आपस में अकबर ने तोडी ।

वश्या खां के चाल सू ये खाई होगी चोडी ।

गदका -पहे-बाज खेलते  दौडते थे घोडी ।
खूंटेली तो इन दोनो ने अब आकर छोडी ।

जुलम सितम के आगे दोनो ने तलवार उठाई ।
मेव और मीणो की यश गाथा जग में लहराई ।

डा.प्रहलाद सिंह मीना दोसा
दिनांक 27-7-2017

मंगलवार, 25 जुलाई 2017

आदिवासी मीणा और शहादत

आदिवासी मीणा और शहादत

"--1834के लगभग जयपुर मैं ब्लैक हत्या कांड  में शिवनारायण झरवाल तथा रामचंद्र मीणा को फासी दी गयी ।

--1849 मैं अमरगढ के रैवत नारायण मीणा को अंग्रेजों ने फांसी पर लटकाया।

-- रायचंद हलकारा को 1838 के लगभग फांसी पर लटकाया था। जयपुर रियासत मैं हलकारे मीणा ही हुआ करते थे।

--अलवर रियासत मैं मेजर केडल की हत्या की साजिश  रचने के आरोप मैं  मोती मीना और उसके साथियों को जेल भेजा गया।

--1857 की क्रांति मैं  भी मीणो ने बढ चढ कर भाग लिया। अग्रेजी शासन काल में खैराड,मारवाड ,मेवाड ,शेखावाटी,तोरावाटी,राठ प्रदेश मैं मीणो ने विद्रोह किये थे । इन विद्रोहों में हजारों मीणे शहीद हुए थे पर उनके नाम इतिहास से मिटा दिए गये ।

--1857के विद्रोही पदिया मीणा को 1887 में फांसी  पर लटकाया गया ।

--नेताजी सुभाष चंद्र बोस का वाहन चालक जिला  बूंदी के उमर गांव का बिहारी लाल मीना था जिसका उल्लेख इंडिया टूडे मैं कप्तान जगदीश मीना ने एक लेख मैं किया था।

--आजादी की लडाई मैं  मीना आदिवासी किसी से पीछे नहीं रहे। मीणा समाज में कोई  देश द्रोही नही था। बेईमान लेखको ने आदिवासी देशभक्तो के योगदान की उपेक्षा की है ।"
### डॉ प्रह्लाद सिंह मीना ###

भारत की मूलवासी और मूलनिवासी में क्या अंतर है ?

देश की आदिम जनजातियां भी वास्तविक रूप से इस देश की मूलवासी एवं प्रथम नागरिक है । इन आदिम जनजातियों को ही आदिवासी कहा जाता है । इनकी अधिकांश उपस्थिति अनुसूचित जनजाति में है लेकिन कुछ राज्यों में इन्हें अनुसूचित जाति अथवा पिछड़ी जाति में भी रखा गया है जो मूलवासियों की एकता में एक बड़ी बाधा है जिसका विरोध हर बुद्धिजीवी आदिवासी करता है ।

आदिम जनजाति/मूलवासी/आदिवासी/ST के अतिरिक्त भारत की शेष जनता जो भारत की नागरिक है उन विदेशी जातियों की वंशज है जिनके पूर्वज कभी भारत में आक्रमणकारी या व्यापारी के रूप में भारत आये । मूलवासी की उपस्थिति में भारत का गैरमूलवासी विदेशी है । मूलवासी और गैरमूलवासी को ही सम्मिलित रूप से मूलनिवासी कहते है लेकिन मूलनिवासी को देश का प्रथम नागरिक कहलाने का अधिकार नहीं है जबकि मूलवासी इस देश का प्रथम नागरिक है क्योंकि वो इस देश की भूमि पर आदिकाल से निवास करता आ रहा है।

### डी एस देवराज ###

#मीणा समाज का सामाजिक और राजनेतिक जागरण :: प्रमुख 12 विभूतिया #

        अंग्रेज़ी शासन काल में 1857के बाद मीना जनजाति का पतन शनै शनै बढता गया । अशिक्षा के कारण विगत गोरव को भूल गये और वर्ग भेदो में बट कर मीना जनजाति कमजोर हो गई । एक तरफ मीना जनजाति के एक वर्ग की स्वतंत्रता की भावना को दबाने के लिए उनको जुरायम पेशा घोषित कर दिया तो दूसरी तरफ गांवो में सामंतवादी लोग जुल्म और शोषण करने लगे ।

     1947 से पूर्व  राष्ट्रीय चेतना के आंदोलनो से प्रभावित होकर समाज के जागरूक लोगों में चेतना का संचरण हुआ ।  समाज के गत गोरव की स्थापना करने के लिए जाति सुधार ,जाति उत्थान के लिए जाति एकता का कार्य समाज के जागरूक लोगों ने किया । इन जागरूक समाज सेवको की सूची लम्बी है । चूँकि  समाज में 12 की संख्या का विशेष महत्व रहा है इस लिए लंबी सूची में से 12 समाज सेवकों का चुनाव  1952के आसपास वातावरण बहुत बदल गया था ।लोकतंत्र मजबूत हो गया ।इस कारण 12प्रमुख विभूतियो के चयन में 1950केबाद समाज सेवा में जुडे समाज सेवको पर विचार नही किया जाना तर्कसंगत उचित हैं। 1988से लगातार मेरे द्वारा सामाजिक जानकारीया पुराने सामाजिक कार्यकर्ताओंसे जानकारीया जुटाई और पुराने रिकॉर्ड का संकलन मैंरेद्वारा किया  ।कुछ भाईयो का आग्रह था कि सामाजिक कार्य कर्ता की लम्बी सूची में से 12विभूतियो का चयन कर उनके योगदान को समाज के सामने लाए। चयनित 12की सूची में मुझे जयपुर क्षेत्र के सामाजिक कार्य कर्ता मैं लक्ष्मीनारायण झरवाल के अतिरिक्त अन्य सामाजिक कार्य कर्ता औ में से एक और चयन करना उचित लगा उनमें धन्ना लाल जी ,रामबक्श सिहरा जमवारामगढ ,भंवर सिंह छाडवाल ,झूतालाल जी ,गुलाब चंद गोठवाल ,रामसहाय सिहरा ,भोरीलाल बडदावत में से एक का चयन करने पर मंथन करना पडा ।वैसे उपरोक्त जयंपुर के आसपास तक ही सीमित थे ।संतुलन की दृष्टि से इनमें से एक का चयन करना तर्कसंगत उचित लगा ।उपरोक्त मैं एक भी स्वतंत्रता सेनानी की श्रेणी का ज्ञात नहीं हुआ ।धन्नालाल जी ने 1935में मीणा क्षत्रिय सभा जमवारामगढ का गठनकिया था उस समय के वातावरण को देखकर उनकी पहल को ध्यान में रखकर ही उन का चयन किया ।
    सामाजिक कार्य कर्ताऔ के सामाजिक कार्यो का तुलनात्मक मूल्यांकन करने पर 12प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं की निम्नाकित सूची सामने आती हैं ।
         
1-मुनि मगन सागर जी नि.उखलाना 
गोत्र गोठवाल जिला टोक 
2स्वतंत्रता सेनानी गणपत राम जी बगराणीया नि.नरहड जिला झुनझुनु 
3नाजिम नारायण सिंह नोरा्वत  नि.डग जिला झालावाड 
4धन्नालालजी दे्वडवाल नि. नेवर खेडा जिला जयपुर ।
5महाशय छाजू सिंह जी कांवत नि.शाहजहापुर स्वतंत्रता सेनानी 
6लक्ष्मी नारायण झरवाल स्वतंत्रता सेनानी जयपुर 
7भैरूलाल जी कालाबादल स्वतंत्रता सेनानी  जिला बारा 
8भीमसिंह एडवोकेट स्वतंत्रतासेनानी  भरतपुर 
9 रामसिंह नोरावत नाजिम साहब के सुपुत्र इनके दूसरे भाई भगवान सिंह तरंगी भी अच्छे प्रभावशाली कार्यकर्ता थे।राष्ट्रीय स्तर पर मीना जाति को संगठित करने में रामसिह जी का महत्वपूर्ण योगदान था।
10बद्री प्रसाद दुखिया स्वतंत्रता सेनानी नि.शाहजहापुर 
11अरीसाल सिंहमत्स्य स्वतंत्रता सेनानी कोटपूतली 
12लाल सिंह रावत अजमेर  पोखरिया गोत्र के रावत -रावत मीणा 
      अजमेर मेरवाडा के रावतो ,मेवाड ,ढूंढार ,हाडोती ,मालवा क्षेत्रो मैं मीना जाति की एकता का महान कार्य किया ।मेवाड केमीना समाज  का नाम भी रावत -राजपूत हो जाता यदि लाल सिंह रावत कार्य नहीं करते ।टोडाभीम में भी इनकी अध्यक्षता में एक मीणा सम्मेलन 1937 में आयोजित हुआ था।
    उपरोक्त सूची में पिता पुत्र का नाम उनके महान कार्यो के कारण ही आया हैं।शाहजहापुर के दुखिया जी के नाम से अधिकांश परिचित है उनके नाम के अलावा महाशय छाजूसिंह के नाम के चयन का आधार भी उनके महान कार्य हैं 1931के जमवारामगढ के सम्मेलन 1942के अजीजाबाद उ.प्र.1948के बडवा सम्मेलन और भी बहुत से सम्मेलनो मैं भाग लिया 1937से पूर्व बहुत से स्थानो पर समाज सुधार सभा गठित करवाई ।आप शाहजहापुर मीणा क्षत्रिय सभा के प्रचारक थे ।आर्य समाज शाहजहापुर के मंत्री थे ।आर्य समाज के बडे बडे क्रांतिकारी नेताओं से संपर्क था ।शाहजहापुर 1935से 1943तक मीणा जाग्रति का केन्द्र था ।ग्राम की दृष्टि से आकलन किया जाए तो सबसे अधिक सामाजिक कार्य कर्ता शाहजहापुर गांव के थे ।चोधरी दानसिंह सब इंसपेक्टर ,सूबेदार सामंत सिंह ,विधा प्रकाश आदि सामाजिक कार्य कर्ता थे ।अखिल भारतीय मीणा क्षत्रिय सभी का प्रधान कार्यलय भी शाहजहापुर मैं था ।
     सूची निष्पक्षता से  तैयार की हैं फिर भी कोई भी भाई सुझाव दे सकता हैं आवश्यकता हुई तो सशोधन भी किया जाना संभव हैं। उपरोक्त 12के अतिरिक्त अन्य सामाजिक कार्य कर्ता भीसम्मानीय हैं। 12विभूति के अन्तर्गत तो 12ही शामिल किए हैं इसलिए इस शीर्षक के अन्तर्गत अन्य का नाम छूटगए है यदि कोई भाई अन्य किसी को इस सूची मैं शामिल करवाना चाहता है तो साक्ष्य  प्रस्तुत कर नाम बताए और यह भी बताए कि इनमें से किस नाम को निकाला जाए और क्यो? 
     .समाज के सभा सम्मेलनो मैं कभी कभी कुछ सामाजिक कार्य कर्ताऔ के नामो को उल्लेख करते हैं और जिन नामो का उल्लेख करते उनमें मैंने6माह पूर्व तक मुनि मगन सागर जी ,नोरावत जी आदि का तो नाम ही नहीं सुना ।युवा लोगो द्वारा जो स्वतंत्रता सेनानी नहीं उन्हें स्वतंत्रता सेनानी तक पोस्टो पर लिखा जाता हैं इससे अन्य का अपमान होता हैं समाज उत्थान का कार्य करने वाले सभी सामाजिक कार्य कर्ता हमारे लिए सम्मानीय हैं । किसी का कुछ लोगों द्वारा अतिशोयक्ति पूर्ण तरीके से बढा चढा कर लिखा या बोला जाता हैं और उससे अन्य का योगदान गोण होता हैं तो विश्लेषण वाछनीय हैं ।सामाजिक कार्य कर्ता एक मानव ही होता हैं अतः उसमें भी कुछ मानवीय कमी हो सकती हैं किसी एक कमी की वजह से हम उसके अन्य अच्छे कार्यो को नजर अंदाज़ नहीं कर सकते ।मुनि मगन सागर जी की उपेक्षा से मुझे बहुत ठेस लगी ।मेरी कई पोस्ट पर तथाकथित कई जागरूक लोगों ने भी नेगेटिव टिप्पणीया की इसको मैंनेउनकी अज्ञानता समझा।
     समाज की आजादी के पूर्व की स्थिति का जिसे पता होगा वह सामाजिक कार्य कर्ताऔ के त्याग और सेवा का गुणगान करेगा ।स्वार्थी और ढोंगी लोग अपना ही गुणगान करते हैंउनको सामाजिक कार्यकर्ताओं का गुणगान महत्वहीन ही लगता हैं। आरक्षण की मलाई खाकर समाज के महत्वपूर्ण कार्य कर्ता को भूलना अपनो के प्रति अहसान फरामोशी हैं।
       सूची में संशोधन के लिए कोई भी भाई विचार प्रकट कर सकता हैं परंतु पूर्वाग्रह और किसी बाद से दूर रह कर ही चर्चा करे।

       संकलन कर्ता -डा.प्रहलाद सिंह मीना स्वतंत्र शोध कर्ता

स्वतंत्रता सेनानी मन्नू -कृष्णा का संघर्ष

मन्नू -कृष्णा सेवरिया गोत्र के मीना थे।इनका जन्म जिला अलवर की लक्षणगढ तहसील के खुडियाना गांव में हुआ था।
    अलवर रियाशत मे चोकीदार मीणाऔ पर कई पाबंदीया सबसे पहले लगी थी ।जरायम पेशा कानून सबसे पहले अलवर रियाशत मे लगा था।भरतपुर रियाशत में 1939 में कई जातियो पर जुरायम पेशा कानून लागू किया थाइसमें चौकीदार मीना भी शामिल थे। 
   कृष्णा -मन्नू उग्र स्वभाव तथा स्वतंत्रता प्रेमी थे। दोनो परिवार सहित अलवर रियाशत को छोडकर भू.पू.भरतपुर रियाशत की बैर तहसील के गांव रनधीर गढ मे आकर रहने लगे । वहाँ गोगेरा ठाकुर ने आपको चैन से नहीं रहने दिया ।
गोगेरा ठाकुर चरित्र हीन था ।मन्नू सिंह ने उसको फटकार लगायी थी ।गोगेरा ठाकुर से बिवाद के कारण दोनो भाई परिवार सहित ग्राम गडवा मे जाकर रहने लगे । बैर का लंम्बरदार बादाम सिंह गोगेरा ठाकुर का मित्र था।गोगेरा ठाकुर ने बादाम सिंह को उकसाया कि मन्नू कृष्णा को क्षेत्र से भगा दे।
उस समय क्षेत्र में काग्रेस  की गतिविधिया चालू हो रही थी ।मन्नू कृष्णा भी काग्रेस विचारधारा के लोगों के संपर्क मे आकर उनके सहयोगी बन गए । उनके इन कार्यो से ठाकुर बादाम सिंह लम्बरदार जो पहले से ही नाराज था और विरोधी हो गया।बादाम सिंह को गोगेरा ठाकुर लगातार भडकाता रहता था ।
     ठाकुर बादाम सिंह ने कृष्णा के खिलाफ बैर थाने मैं झूठा मुकदमा दर्ज करवा दिया ।मन्नू सिंह अपने कुछ मित्रो को लेकर भाई किसना को छुडाने भुसावर थाने पहुँचा।और किसना को निर्दोष बताते हुए थानेदार से छोडने का आग्रह करने लगा ।पुलिस ने किसना को छोडने के स्थान पर मन्नू सिंह को ही गिरफ्तार करने कि प्रयास किया। उग्र स्वभाव के मन्नू सिंह और उसके मित्रो ने पुलिस के सिपाहियों पर अचानक लाठियांबर्षायी उनकोघायल कर किसना को छुडा लिया ।सब कुछ अचानक घटित हुआ पुलिस के सिपाहियों को कोई मोका नहीं मिला ।
पुलिस दोनो भाईयो को पकडने मे असफल हुई तो तगवा ग्राम मे रहने वाले उनके रिश्तेदारो को परेशान करने लगी ।
मन्नू -कृष्णा अपने परिवार को लेकर भू.पू.जयपुर रियाशत के गांव केसरी जो आजकल जिला दोसा की महवा तहसील का एक ग्राम में परिवार को बसा दिया।
परिवार केसरी गांव में और स्वय पास के कालापहाड में रहने लगे।उनके निवास स्थान के पास ही बाण गंगा बहती थी।
काला पहाड में मन्नू किसना बंन्दूक चलाना सीखने लगे वे अचूक निशाने बाज बन गए ।
मन्नू सिंह और किसना प्रत्येक शनिवार को भेष बदल कर तडगवा गांव में रामा की बगीची में हनुमानजी की पूजा करने जाते थे ।एक दिन गोगेरा ठाकुर को सूचना मिल गईउसने उनका पीछा किया ।मन्नू -किसना ने लाठियो और पत्थरों से गोगेरा ठाकुर और उसके साथियों का मुकाबला किया ।इनकी चोटो से गोगेरा ठाकुर मर गया ।सरकार नेइसके बाद खूंखार डाकू घोषित कर दिया ।
एक बार फिर मन्नू -किसना तडगवा बगीची पहूचे इस बार ठाकुर बादाम सिंह ने पुलिस की सहायत से पकडने का प्रयास किया। इस बार दोनो भाईयो के पास कारतूसी बन्दूक थी अतः गोली चला कर ठाकुर बादाम सिंह का काम तमाम कर दिया ।
   तीसरी बार पूजा करने पर जाने पर सिसान नामक थानेदार ने उनको घेर लिया परंतु उसको गोली मार कर गिरा दिया था।इसके बाद दोनो भाई चंम्बल के बीहडो मे जाकर रहने लगे वहाँ से समय समय पर काला पहाड अपने परिवार से मिलने आते थे .
उस समय जयपुर रियाशत के आई .जी यंग साहब थे वे मंडावर के पास गढ.हिम्मत सिंह के पास हरीपुरा बसाकर रहने वाले डाकू ठाकुर हरिसिंह को पकडने के लिए पडाव डाले हुए थे ठाकुर हरीसिंह का सूचना तंत्र बहुत मजबूत था वह फरार हो गया।ठाकुर डकैत का उस क्षेत्र मे आंतक था। गढ हिम्मत सिंह के ठाकुर ने यंग साहब को विश्वास दिलाया कि मन्नू सिंह -किसना मजबूरी में डकेत बने है उनमें मानवता है उनसे साठ गांठ कर ले तो हरिसिह को पकडा जा सकता है ।
यंग साहब ने उनके परिवार को विश्वास मे लिया ।यंग ,साहब मीना जाति से प्रभावित थे वे बहादुर और चतुर व्यक्ति थे स्वय भारत आने से पूर्व इंग्लैंड में खूखार डाकू के रूप में कुख्यात थे।
    यंग साहब काले पहाड के नीचे बहने बाली बाण गंगा नदी के जल में खडे होकर मन्नू सिंह और किसना सिंह से मिलेतथा यंग ने उनका ब्रैनबाश किया तथा अनुरोध किया कि मानवता को कलंकित करने वाले और गरीबो की बहिन बेटीयो की इज्जत लूटने वालेहरीपुराके ठाकुर हरीसिंह डाकू और चंम्बल के खूंखार डाकू डूंगर बटोही को मारने अथवा गिरफ्तार करने मे सहयोग मांगा तथा वचन दिया कि -मैं तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की रक्षा मैं सदैव तैयार रहूँगा।
    यंग साहब ने मन्नू सिंह और किसना के सहयोग से हरीपुरा गांव की मुडभेड मे डाकू हरी सिंह को मरवाने में सहयोग किया ।इसके बाद यंग साहब ने कहा कि मेरा एक काम करना है कि -मेरा अपमान करने वाले और मेरे को जान से मारने की कोशिश करने वाले डूंगर बटोही कोजीवित अथवा मृत लाना है।इसके बाद में तुम्हारे परिवार की आजीविका का पूरा प्रबंध कर दूंगा ।
यंग साहब ने किसन सिंह को अपने पास रख लिया तथा मन्नू सिंह और उनके भांजे गंगा सिंह को पिस्तौल देकर वहाँ से रवाना किया और धौलपुर क्षेत्र की पुलिस को मन्नू सिंह को सहयोग करने के आदेश दिए।
   तत्कालीन समय में चनम्बल का सबसे खूंखार डाकू डूगर बटोही थे इनके गिरोह को खत्म करने के उद्देश्य से यंग साहब मुगल पुरा में किला बना कर सात साल रहे फिर भी ऊसे नहीं पकड पाये एक मुडभेड मे डूगर बटोही ने यंग साहब को घेर लिया तथा बुरी तरह अपमानित करके भगाया था अपने अपमान का बदला लेने के लिए यंग साहब ने मीना जाति के शूरवीर मन्नू किसना से समझौता किया था।
मन्नू सिह और उसके भांजा नेसूझ बूझ और अपनी वीरता के बल पर 
डूंगर बटोही को मुडभेड में मार दिया और उसकी लाश पुलिस को सौप दी।इस मुडभेड मैं मन्नू सिंह के पैर में भी गोली लगी थी।
यंग साहब ने खुश होकर मन्नू सिंह और उसके परिवार को बैर तहसील के बल्रभगढ मैं जमीन दिलवा दी यह गांव भरतपुर की महारानी की जागीर मैं था।
    मन्नू सिंह के लडके राम सिंह को पुलिश मे भर्ती करवा दिया। यंग साहब ने मन्नू सिंह को सरकारी आरोपों से मुक्त कराने का आश्वासन दिया परंतु कुछ दिन बाद ही यंग साहब इंग्लैंड चले गए।
पुराने मुकदमो के आधार पर मन्नू सिंह और किसन सिंह को फांसी की सजा दी गई ।उनके लडके मरदान सिंह व छोटे भाई मूला राम को बीस बर्ष की सजा सुनाई ।
उस समय बल्लभ गढ मे भरतपुर की महारानी आती जाती थी ।उनसे मन्नू सिंह की तीनो पत्निया और पुत्र सुलतान सिंह और राम सिंह मिले .गरीब लोगो मैं तो मन्नू किसना लोकप्रिय थे इस कारण महारानीने महाराज भरतपुर से कृष्णा मन्नू की फांसी की सजा माफ करवाने का आग्रह किया।भरतपुर राज घराने की सिफारिश पर मन्नू किसना की फांसी की सजा काले पानी की सजा में बदल दी गयीं ।
    आजन्म कारावास में अंडमान निकोबार दीप भेजा गया।उस समय द्वितीय विश्व युद्व चल रहा था।सुभाष चंद बोस ने अंडमान निकोबारपर आकम्रण कर कैदियों को छुडा दिया ।आजाद हिंद फोज मैं मन्नू किसना कोसूबेदार बना दिया ।
   आजाद हिंद फोज के पराजित होने पर मन्नू किसना भी पुनः आजाद हिंद फोज के कैदियों के साथ बंदी बना लिया.
  जिला भरतपुर के पीपली गांव के हरी सिंह जी मीना बृंदावन मैं मीना धर्म शाला पर रहते है उनका कथन है कि कुछ बर्षो पूर्व उस समय का एक फोजी अवसर से बृंदावन मे मुलाकात हुईथी उसने बोल चाल मे जाति पूछी ।मैना जाति नाम सुनते ही किसना मन्नू के बारे मैं बताने लगा कि  उसने पं.जवाहर लाल नेहरु जी को कृष्णा मन्नू को जेल से छुडवाने के लिए पत्र लिखा था ।पं. नेहरु ने मन्नू कृष्णा को आजाद हिंद फोज का फौजी स्वीकार करते हुए जेल से छुटवाया।
   1948के हल्दैना सम्मेलन से कुछ समय पूर्व ही जेल से छुटे थे जो कुछ भी हो सर्व समाज मे कृष्णा मन्नू लोकप्रिय थे। मंडावर के आसपास के क्षेत्रो मे जागीर दार मीणा किसानो का शौषण करते थे ।हल्देना के समाज सेवी रामधन हल्दैना ने भीम सिंह विधार्थी से सलाह करके हल्दैना सम्मेलन आयोजित किया।इस सम्मेलन के बाद रामधन जी हल्दैना ने कृष्णा मन्नू के साथ उंटो पर दोरे करे कृष्णा मन्नू के नाम से ही अत्याचारी ठाकुर भय भीत हो जाते थे ।जो कुछ भी मन्नू किसना आजाद हिंद फोज मैं सूबेदार बने थे इस कारण स्वतंत्रता सेनानी थे। मन्नू किसना ने मानवता को कलंकित करने वाले डूंगर बटोही को मार कर आम जन मैं लोकप्रिय हो गए थे।जागीर दारो मैं उनका आंतक था आम जनता तो उनकी प्रसंशक थी।सर्व समाज के गरीब लोगों मे मन्नू किसना लोकप्रिय था। 
गूजर आरक्षण के समय मे किसी काम से बल्भगढ गया उस समय कलुआ राम जी सरपंच थे मेने जिज्ञासा वश पूछ लिया की गांवमैं मीणा कम हैं और आसपास के गांवो मे गूजरो की संख्या जादा है कोई परेशानी तो नहीं है तो कलुआ जी ने बताया कि - मन्न किसना के वंशज है किसी की क्या औकात जो हमारी तरफ आंख उठा के देखले।किसी ने आंख उठायी तो भूंज के रख देंगेगांव मैं मीणा जाति का उनका ही घर है माली जादा हैं फिर भी संरपंच उनके परिवार का ही बनता है ।इस पंचायत के प्रथम सरपंच भी मन्नूसिह जी निर्विरोध चुने गए थे। 

###डा.प्रहलाद सिंह  मीना###

====दीपावली-पितृ तर्पण, महावीर और यक्ष संस्कृति=== लेखक- डॉ प्रह्लाद सिंह मीणा

सम्पादन-देवराज

1-इतिहासवेत्ता डॉ प्रह्लाद सिंह मीणा के मतानुसार ज्ञातृक कुल के ज्ञातृकों को नय व् नाय सम्बोधनों से भी सम्बोधित किया गया है।न्य का अर्थ मछली होता है । हिंदी शब्दकोशों में नय का अर्थ निति है अत स्पस्ट है की न्य शब्द से ही नय व् नाय शब्द की उत्पति हुयी है । 
अति प्राचीन काल में मीणा जनजाति के ही अन्य नाम न्य, ने, नेवर, नयस भी थे ।चूँकि नय व् नाय जाति मीन जनजाति  का ही एक रूप है  और भगवान महावीर के कुल ज्ञातृक कुल को भी नय- नाय कहा गया है । भगवान महावीर के क्षेत्र नेपाल में आज भी नेवार जाति पायी  जाती है ।

2-यक्ष के अनेक अर्थ है जैसे खाना, पूजा, किसी का सम्मान करना , एक जाति विशेष जैन ग्रन्थ में आत्म संयमी व्यक्ति को यक्ष कहा है । 
जातिवाचक यक्ष शब्द मीन के पर्यायवाची झष का ही अपभ्रंश है । प्राचीन काल में शब्द के अंत में लगे ष की ध्वनि ख उच्चारित की जाती थी  अतः झष शब्द का अपभ्रंश जख में हो कर इसका संस्कृतकरण यक्ष हुआ  और कुछ इतिहासकारो के अनुसार भगवान महावीर का सम्बन्ध यक्ष जाति से था । 
हिमालय क्षेत्र विशेष में मीन जाति के लोग जख-यक्ष कहलाये । इस शाखा के मीन आवागमन व्यवसाय से जुड़े थे और व्यापारियो के रक्षक होने के साथ स्वयं भी व्यापार करते थे ।
(जख-यक्ष मीन विश्वसनीय धन के रक्षक थे ।धन के विश्वसनीय रक्षको के रूप में मीना जनजाति की पहचान आधुनिक समय तक बरकरार रही जिसके कारण ही जयपुर राज घराने के खजाने के रक्षक मीना जनजाति के लोग ही होते थे ।)
कुछ विद्वजन असुर अनार्यो को दो रूप में मानते है , एक जो रक्षा करने का कार्य करते उन्हें यक्ष कहा गया दूसरे जो  यज्ञ को नस्ट करने का काम करते उन्हें राक्षस ।
(यक्षो का राजा प्रसिद्ध कुबेर हुए जिन्हें आर्य संस्कृति ने कालांतर में सम्मान दिया और देवता का स्थान प्रदान किया लेकिन उन्हें मुख्य देवता का स्थान कभी प्राप्त नही हुआ । )

3-राजस्थान के जिले करौली में श्री महावीर जी नामक स्थान का प्राचीन नाम चंदन पूरी (चांदन गाँव) था  लकवाड़ गोत्र के चंदन ने चन्दनपुरी (चांदन गाँव) की स्थापना करी थी । इसी चन्दनपुरी के अवशेषो से श्री महावीर भगवान की मूर्ति प्राप्त हुयी थी और इन्ही महावीर जी के मेले में आस पास के मीणा भाग लेते है ।

4-हिमालय प्रदेश में प्राचीनकाल में वीर मतस्य जनपद था । महाभारत कालीन मतस्य जनपद आधुनिक मीना जनजाति का प्राचीन जनपद था । यक्ष का एक अन्य नाम वीर है । अतः वीर मतस्य जनपद यक्ष मीन जाति का जनपद प्रतीत होता है ।

5- दक्षिण भारत में यक्ष पूजा मारन नाम से भी होती है और आदिम जनजाति मीना/ मीन/ मीणा को मारण भी कहा जाता है ।

उपरोक्त तथ्यों से स्पस्ट होता है की मीन /मीना/मीणा  जाति का यक्षो से, यक्ष संस्कृति से  सम्बन्ध रहा है साथ ही भगवान महावीर से भी । इन्ही भगवान महावीर का दीपावली के दिन निर्वाण होने पर लिच्छवियों ने दीपक जलाये थे क्योकि नायो के सिधार्थ ( महावीर) का विवाह लिच्छवी कुल की तृषला से हुआ था । 
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र में दीपावली के दिन पितरो को दीपक दिखाने की परम्परा आज भी है ।

दीपावली को दीपक जलाने की परम्परा का सम्बन्ध पितरो को दीपक जला कर उनके स्वागत के लिए है । काल के थपेड़ो ने दीपक जलाने के मूल कारण को विस्मर्त कर दिया लेकिन उस के अवशेष आज भी बाकी है ।

दीपावली का पर्व अमावस्या के दिन आता है । माह की प्रत्येक अमावस्या को पितरो को भोग लगाने की परम्परा आदिम मीन/मीना/मीणा जनजाति में आदिम काल से चली आ रही है । भगवान महावीर के निर्वाण दिवस होने के कारण दीपावली कार्तिक कृष्ण अमावस्या का दिन पितृ तर्पण के लिए मुख्य हो गया । मीना जनजाति के कुछ गोत्रो में दीपावली के दिन पितरों को जल तर्पण की परम्परा है । आर्य संस्कृति के विपरीत मीना जनजाति में दीपावली के एक दिन पूर्व, दीपावली के दिन, गोवर्धन के दिन और कार्तिक शुक्ल चौदस के दिन पितरों को जल तर्पण किया जाता है न की श्राद्ध पक्ष में , साथ ही पितर तर्पण में ब्राह्मण भूमिका नहीं होती और ये परम्परा मीना जनजाति को अपनी अनार्य परम्परा से आज भी जोड़े हुए है जो इस बात को प्रमाणित करती है की मीना जनजाति एक अनार्य जाति है ।इस प्रकार देखा जाए तो दीपावली का त्यौहार यक्ष पूजा और पितृ तर्पण का ही मूल पर्व है ।

दीपावली से राम का सम्बन्ध बहुत बाद में जोड़ा गया है । यह विचारणीय है की यदि इस पर्व का सम्बन्ध राम से रहा होता तो उनकी पूजा भी इस दिन प्रचलित  हुयी होती परन्तु ऐसा  नहीं है ।

मूल लेखक- डॉ प्रह्लाद सिंह मीणा-9414334664