गुरुवार, 10 अगस्त 2017

अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन में राजस्थान के मीना

अंग्रेजो भारत छोडो आंदोलन में मीना समाज के कतिपय स्वतंत्रता सेनानी

9अगस्त 1942 को भारत छोडो आंदोलन की शुरुआत बंम्बई से हुई थी ।आंदोलन से पूर्व  गांधी जी और नेहरूजी गिरफ्तार कर लिए गए थे अरुणा आसफ अली और उनके साथियों के नेतृत्व में आंदोलन हुआ।

इस आंदोलन  में मीना समाज के लोगो का भी योगदान रहा कुछ का परिचय निम्नांकित है

(1 ) कन्हैया मीना -इनका मूल गांव रोनीजा जिला अलवर था । बाद मे जिला भरतपुर में ग्राम पंचायत कबई  के नगला कोलोनी में  जा बसे। आंदोलन के पूर्व इनका एक भाई बम्बई मजदूरी करने चला गया । लम्बे समय तक घर नही आने पर छोटा भाई कंन्हैया बम्बई  भाई को ढूंढने गया ।उस दौरान अंग्रेजों भारत छोडो आंदोलन की तैयारी हो रही थी । भीड देखकर उसमें शामिल हो गया । अनपढ था परंतु गांधी नेहरू के नाम से परिचित था, अंग्रेजों से घृणा थी ।
सभा जुलूस में बदली जुलूस के आगे झंडा लेकर कोन चले चर्चा हुई । कंन्हैया ने पहल करते हुए झंडा उठा कर चलने के लिए  सहमति दे दी । कन्हैया झंडा को लेकर सबसे आगे चला और नारे लगाए । आंदोलन में गिरफ्तार हुए । बम्बई जेल में बंद रहे ।इनको भी पुलिस नेता समझने लगी इस कारण इनके स्वास्थ्य का चैकअप होता था बजन घटने लगा तो पूछा गया, "क्या खाते हो" ।  जवाब दिया की जो चना और गेहूं की रोटी । जेल मे तो गेहूं की रोटी मिलती थी । इनके लिए पृथक से गेहूं, जो और चना मिश्रित रोटी  की व्यवस्था की गयी ।
जेल से छुटने के बाद गांव आ गया इनका भाई भी कुछ दिनो बाद आ गया । आंदोलन की भागा दोडी के दौरान उनका भाई किसी गोदाम मे अंधा बन कर घुस गया वहां उसे पांच हीरे मिले,  उनक़ो ले आया कालांतर मे एक सुनार को बताए । वह हीरो की कीमत से अपरिचित था  सुनार ने मामूली रकम देकर खरीद लिए, बाद मे हीरा होने का पता चला ।
दोनो भाईयो मे मन मुटाव हो गया । कन्हैया भरतपुर जिले मे आ गया सन 1960 जिला भरतपुर की कबई ग्राम पंचायत मे भीमसिंह एडवोकेट द्वारा सरकारी सहायता से मीना समाज के  लिए बनवाई पक्के मकानो की कोलोनी मे जाकर बस  गया ।
कन्हैया जी घुसींगा गोत्र के थे ।

कन्हैया जी के नजदीकी व्यक्ति यो से तथा स्वयं उनसे छात्र जीवन मे मेरे द्वारा जानकारी संकलित की थी ।
(2 ) बद्री प्रसाद दुखिया जी- आंदोलन के समय सतलज काटन मील ऊंकाडा में नोकरी करते थे आंदोलन से पूर्व काग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं के संपर्क में आकर   काग्रेस के समर्थक बन गए ।
ब्रह्मा नंद उर्फत के सानिध्य में आंदोलन में भाग लिया ।मील में हडताल करवायी ।
  पिक्केटिंग करते हुए गिरफ्तार हुए तथा दो महीने की जेल की सजा मोंटगुमरी जेल में बितायी ।

(3) भैरव लाल कालाबादल जी -कालाबादल जी की आत्म कथा से पता चलता है कि भारत छोडो आंदोलन के समय कालबादल जी। भैसरोड गढ में अज्ञात वास गुजार रहे थे ।आंदोलन का पता चलने पर कोटा जाकर भाग लिया ।

(4) लक्ष्मीनारायण जी झरवाल - झरवाल जी द्वारा लिखित पुस्तक में झरवाल जी के 1942के आंदोलन मे भाग लेने का उल्लेख है ।

(5 ) भीमसिंह एडवोकेट भरतपुर - आंदोलन के समय इनकी उम्र 18वर्ष थी ।स्टूडेंट फेडरेशन के समर्पित कार्य कर्ता थे ।मास्टर आदित्येंद्र जी ने छात्रो मे राष्ट्रीय चेतना जगाने के उद्देश्य से छात्र कार्यकर्ताओं का स्टूडेंट फेडरेशन गठन करवाया था ।
भरतपुर के दिग्गज जाट नेता नत्थी सिंह और भीमसिंह जी छात्र जीवन के घनिष्ठ मित्र थे ।नत्थी सिंह जी की जीवनी जीवन डगर तथा सन 1951-1952मे मास्टर आदित्येंद्र जी और युगल किशोर चतुर्वेदी द्वारा भीम सिंह जी को दिए चरित्र प्रमाण पत्रो से ज्ञात होता है कि भीमसिंह जी ने सन 1942 के भारत छोडो आंदोलन में भाग लिया । भारत छोडो आंदोलन के दौरान आंदोलन का प्रचार प्रसार किया छात्रो की टोली बनाकर शहर मे घूम कर नारे लगाते उस दौरान पुलिस ने छात्रो पर डंडे बर्षाए परंतु छात्र समझ कर गिरफ्तार नही किया ।
सन 1942से पहले ही राजबहादुर जी ,मास्टर आदितेंद्र ,युगल किशोर चतुर्वेदी ,सावल राम चतुर्वेदी आदि के संपर्क मे आ गए थे ।

(6) श्रीमती नारंगी देवी - जयपुर के महारानी स्कूल की छात्रा थी भारत छोडो आंदोलन में स्कूल मेन तिरंगा झंडा फहराया 15बेतो की सजा मिली ।
डा.श्रीमती उषा अरोडा  ने नारंगी देवी पर एक लेख लिखा उसमें भारत छोडो आंदोलन में नारंगी देवी जी के भाग लेने का उल्लेख किया था ।लेख मेरे संकलन में सुरक्षित है ।

(7) गणपत राम जी बगराणीया -   समाज के सबसे बरिष्ठ तम सामाजिक कार्य कर्ता और स्वतंत्रता सेनानी थे  । उनकी जीवनी के कुछ प्रसंगो से सहज अनुमान लगता है कि भारत छोडो आंदोलन में  वे शांत नही रह सकते ।जलियांवाला बाग कांड का बदला लेने के लिए भी हथियार इकट्ठा किए परंतु पुलिस द्वारा जप्त कर लिए थे ।
स्व ः राजेंद्र कुमार अजेय जी से सामाजिक जानकारी संकलित करने के लिए मैने मुलाकात करी उस दोरान मैने उनसे गणपत जी के संदर्भ मे पूछा तो अजेय जी के बोल सर्व प्रथम निकले -वो बहुत महान  देशभक्त  थे जलियांवाला बाग कांड का बदला लेने का प्रयास किया था ।भारत छोडो आंदोलन में गणपत जी ने किस जगह भाग लिया इसका पता नही चल पाया .कुछ काल के लिए उन्होने यायावर जीवन व्यतीत किया था । उस दोरान हरियाणा में रहे थे ।

संकलन कर्ता -डा . प्रहलादसिंह मीना , दौसा ।

शनिवार, 5 अगस्त 2017

मीना समाज मे चारी प्रथा

चारी प्रथा पुनःचालू की जाए ।

सामाजिक प्रथाएं हमे अपने पूर्वजौ से विरासत में मिलती है हर प्रथा में केवल बुराईयां हो ऐसी बात नही।कुछ प्रथाओ में केवल अच्छा ईया तो कुछ मे बुराई और अच्छाईया  दोनो होती है ।

बुराईयों युक्त प्रथा
के उन्मूलन की आवाज बुलंद करने से पहले हम क्यो ना उसकी बुराईय़ो को दूर करने  का प्रयत्न करे ताकि उस प्रथा  में अच्छाईया ही रह जाए ।

उ.पू. राजस्थान के मीना समुदाय में दक्षिण राजस्थान के मीना समुदाय के समान वधू मूल्य की प्रथा थी कालांतर मे एक निश्चित राशी ली जाने लगी कुछ दशक पूर्व पचवारा में चारी की रकम 43रूपये तय थी वर पक्ष  वधू पक्ष को  देता था ।

समाज का नजरीया बदला चारी प्रथा को समाप्त कर दिया ।जिस समय चारी प्रथा बंद की उस समय वर पक्ष ही वधू का सहारा जेवर बनवा कर ले जाता था।

वर्तमान मे  मीना समाज में दहेज एक गंभीर बीमारी की तरह है इस पर अंकुश लगाने के लिए लुप्त हो चुकी चारी प्रथा को बढावा दिया जाना चाहिए ।मेरे व्यक्तिगत विचारो से इस प्रथा से कई लाभ समाज हित मे ले सकते है

1 अदिवासी पहचान को मजबूती मिलेगी ।

2 संगठन ग्राम या ब्लोक स्तर पर कमेटी गठित कर पंच पटेलो के माध्यम से चारी की रकम दहेज के आधार पर तय कर  वधू पक्ष को ना देकर संस्था में जमा करे
  तथा उस संकलित रकम से समाज की विधवा की पुत्री या गरीब परिवार की लडकी के विवाह मे खर्च किया जाए

3 चारी प्रथा से शनै शनै दहेज की प्रथा पर अंकुश लगेगा ।

डा.प्रहलादसिंह मीना दौसा